Tuesday 7 April 2015

सच्चा गुरु

नौजवानयुवक रहता था। इक दूध बेचनेवाली दोनों को रोज़ दूध देनेआया करती थी। साधू सारा दिनहाथ में माला लेकर प्रभु नामका जाप किया करता। साधू को अचरजहुआ देख कर कि दूध बेचनेवाली जब उसको दूध देती तो मापतोल कर लेकिन उस नवयुवक केबर्तन में बिना माप तोल कियेही डाल दिया करती है। एक दिनसाधू ने पूछ ही लिया कि आपउसका हिसाब किस तरहरखती हो , आपतो कभी देखती ही नहीं कि कितना डाला नवयुवकके बर्तन मेंआपने। दूध बेचने वाली का जवाबथा कि मैं उसको प्यारकरती हूं ,उसके साथ कमज़्यादा का हिसाब कैसे रखसकती हूं।उससे बदले में लेना नहीं मुझेकुछ भी। साधू को लगा कि एक दूधबेचनेवाली जिसको प्यार करती हैउसका कोई हिसाबनहीं रखती और मैं हूं कि जिसपरमात्मा से प्यार करने की बातकहता हूं उसके नामकी माला गिनता रहता हूं। और उससाधू नेमाला को फैंक दिया औरकहा कि माई आपने मुझेसच्चा प्यारक्या है ये सबक सिखलाया हैमैं आपको अपना गुरुमानता हूं। 


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